भारतीय निवेशकों पर क्या सीमा है
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बीमा (संशोधन) बिल, 2021
- कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमन ने 15 मार्च, 2021 को राज्यसभा में बीमा (संशोधन) बिल, 2021 को पेश किया। बिल बीमा एक्ट, 1938 में संशोधन करता है। यह एक्ट बीमा कारोबार के कामकाज के लिए फ्रेमवर्क प्रदान करता है और बीमा कंपनी, उसके पॉलिसी धारकों, शेयर धारकों और रेगुलेटर (इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के बीच संबंधों को रेगुलेट करता है। यह बिल भारतीय बीमा कंपनियों में अधिकतम विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाने का प्रयास करता है।
- विदेशी निवेश : एक्ट में यह प्रावधान है कि विदेशी निवेशक किसी भारतीय बीमा कंपनी में 49% तक का पूंजी निवेश कर सकते हैं। इस भारतीय कंपनी पर किसी भारतीय एंटिटी का स्वामित्व और नियंत्रण होना चाहिए। बिल निवेश की इस सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% करता है और स्वामित्व और नियंत्रण के प्रतिबंध को हटाता है। हालांकि यह विदेशी निवेश केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट अतिरिक्त शर्तों के अधीन हो सकता है।
- एसेट्स में निवेश : एक्ट में कहा गया है कि बीमा कंपनियों को एसेट्स में एक न्यूनतम सीमा तक निवेश करना होगा, जोकि उनकी बीमा दावों संबंधी देनदारियों को चुकाने के लिए पर्याप्त हो। अगर बीमा कंपनी भारत के बाहर निगमित हुई है या बाहर स्थित है, तो इन एसेट्स को भारत के किसी ट्रस्ट के पास होना चाहिए और ऐसे ट्रस्टी के अधिकार में होना चाहिए जोकि भारत का निवासी हो। एक्ट एक स्पष्टीकरण देता है कि यह प्रावधान भारत में निगमित हुई बीमा कंपनी पर भी लागू होगा: (i) जिसकी न्यूनतम 33% पूंजी पर भारत के बाहर रहने वाले निवेशकों का स्वामित्व है, या (ii) जिसकी गवर्निंग बॉडी के न्यूनतम 33% सदस्य भारत के बाहर रहते हैं। बिल इस स्पष्टीकरण को हटाता है।
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना भारतीय निवेशकों पर क्या सीमा है प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण भारतीय निवेशकों पर क्या सीमा है किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र , अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती भारतीय निवेशकों पर क्या सीमा है है।
करना चाहते हैं विदेशी शेयर बाजारों में निवेश तो जान लीजिए ये Tax Rules, बड़े काम की है ये जानकारी
भारतीयों का विदेशी शेयर बाजारों (Foreign Equity Investmet) में निवेश करने का रूझान बढ़ता जा रहा है. विदेशी बाजारों में भी अमेरिकी बाजार भारतीयों की पहली पसंद है.
नई दिल्ली. अपने निवेश पोर्टफोलियो (Investment Portfolio) में विविधता लाने का एक तरीका विदेशी बाजारों में निवेश (Investing In Foreign Markets) करना है. विदेशी बाजारों में निवेश से निवेशकों को अस्थिरता से निपटने में मदद मिलती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि जरूरी नहीं कि जब घरेलू बाजार में गिरावट हो तो विदेशी बाजार भी गिर रहे होंगे. इसका एक अन्य फायदा यह है कि इसमें मुद्रा में उतार-चढ़ाव के जोखिम से राहत मिलती है. निवेशक को निवेश पर रिटर्न डॉलर में मिलता है. रुपये में गिरावट होने पर विदेशी मुद्रा में निवेश का मूल्य बढ़ जाता है. इसका आपको दोहरा फायदा होता है.
भारतीय कई देशों के शेयर बाजारों में निवेश कर सकते हैं. परंतु ज्यादातर भारतीयों के लिए न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज (New York Stock Exchange) और नेस्डेक (NASDAQ) में ही निवेश करना पसंद करते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि ये सबसे बड़े स्टॉक मार्केट हैं. किसी घरेलू या विदेशी ब्रोकरेज के माध्यम से एक ब्रोकरेज अकाउंट (Brokerage Account) खोलकर कोई भी भारतीय एप्पल (Apple), टेस्ला (Tesla), स्टारबक्स और मेटा (Meta) जैसी कंपनियों के शेयरों में निवेश कर सकता है. कोई भी भारतीय निवेशक विदेशी शेयर बाजार में स्वयं 2.5 लाख डॉलर प्रति वर्ष निवेश कर सकता है. म्यूंचुअल फंड (Mutual Fund) के माध्यम से निवेश की कोई सीमा नहीं है.
कैसे करें निवेश (How To Invest in Foreign Markets)
कोई भी निवेशक घरेलू शेयर बाजारों की तरह विदेशी शेयर बाजारों में भी निवेश कर सकता है. विदेशी बाजारों में भी निवेश 2 तरीके से किया जा सकता है. निवेशक म्यूचुअल फंड के जरिए इनमें निवेश कर सकता है. कोई व्यक्ति सीधे ही विदेशी शेयर बाजारों से खरीदारी कर सकता है. म्यूचुअल फंड में कई प्रकार के फंड हैं, जो विदेश में निवेश का प्रस्ताव देते हैं. भारत में कई अंतरराष्ट्रीय म्यूचुअल फंड हैं. इन म्यूचुअल फंडों की खास बात यह है कि इनमें भारतीय करेंसी में ही निवेश कर सकते हैं और आपको फॉरेक्स एक्सचेंज के झंझट में भी नहीं पड़ना होता है और न ही फॉरेक्स एक्सचेंज चार्जेज देने होते हैं. म्यूचुअल फंड के जरिए एक निवेशक कितना भी निवेश कर सकता है.
कितना लगता है टैक्स (Tax on Foreign Equity Investment )
विदेशी बाजारों में निवेश करने से पहले टैक्स नियमों को जान लेना जरूरी है. यह समझना जरूरी है कि वहां की कमाई पर कितना और कैसे टैक्स लगेगा. यूएस सिक्योरिटीज और एक्सचेंज कमीशन (US Securities and Exchange Commission -SEC) के साथ पंजीकृत निवेश सलाहाकार वेस्टेड फाइनेंस (Vested Finance) का कहना है कि अगर 24 महीनों से ज्यादा स्टॉक को अपने पास रखकर बेचा जाता है तो उस पर 20 फीसदी की दर से लॉंग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा और कुछ सरचार्ज और फीस भी देनी होगी.
ईटीएफ के लिए यह सीमा 36 महीने हैं. अगर 24 महीने से पहले ही बिकवाली कर दी जाती है तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स आपके इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से वसूला जाएगा. यही नहीं, अमेरिका में डिविडेंड्स पर 25 फीसदी की दर से टैक्स लगता है. इनवेस्टर को ब्रोकरेज काटकर ही बाकी 75 फीसदी रकम देता है. हालांकि, भारत में टैक्स फाइल करते समय चुकाए गए डिविडेंड टैक्स का क्रेडिट ले सकते हैं.
स्पेशल टैक्स नहीं
ऑनलाइन पोर्टल टैक्सबडी डॉट कॉम (Taxbuddy.com) के फाउंडर सुजीत बांगड़ का कहना है कि अमेरिका या किसी अन्य देश में इक्विटी में निवेश के लिए कोई निर्धारित टैक्स रेट आदि नहीं हैं. विदेशी होल्डिंग्स भी सोने की तरह ही एक एसेट है जिस पर नियमानुसार टैक्स लगता है. हम यहां विदेशी एसेट अपने पास रखते हैं तो यह जरूरी है कि वो ऐसे फंड से खरीदे गए हों, जिसकी जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में हमने दी हो.
विरासत में मिले हों शेयर तो क्या?
अगर किसी को विदेशी शेयर विरासत (Inherits Foreign Shares) में मिले हों तो फिर क्या होता है? इस सवाल के जवाब में बांगड़ का कहना है कि अगर कोई भारतीय विदेशी एसेट्स में निवेश ग्लोबल फंड्स आदि के माध्यम से निवेश करता है तो इस तरह के निवेश पर विरासत कर या एस्टेट ड्यूटी नहीं देनी भारतीय निवेशकों पर क्या सीमा है होती है. अगर कोई व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत हैसियत से अमेरिका में शेयर खरीदता है तो उसकी मौत के बाद विरासत टैक्स (Inherits Tax) देना पड़ता है. लेकिन, ऐसे मामलों में भी अमेरिका में चुकाए टैक्स पर वह भारत में क्रेडिट ले सकता है क्यों भारत और अमेरिका इस को लेकर समझौता है.
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नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और यूनिसेफ ने उद्योगपतियों और कॉरपोरेट्स से बच्चों और युवाओं में निवेश करने का आग्रह किया
मुंबई, भारत, 05 अक्टूबर 2018: यूनिसेफ की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेनरीएटा फोर ने आज यहां नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनएसई) में 'क्लोजिंग बेल' बजाकर आने वाले समय में बच्चों और युवाओं में निवेश करने की आवश्यकता पर भारतीय निवेशकों पर क्या सीमा है बल दिया।
इस समारोह में श्री विक्रम लिमये, प्रबंध निदेशक, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज; डॉ यास्मीन अली हक, राष्ट्र प्रतिनिधि, यूनिसेफ इंडिया; और श्री रितेश अग्रवाल, ओयो रूम्स के संस्थापक और सीईओ, भी मौजूद थे।
इस मौके पर सुश्री फोर ने कहा, "भारतीय व्यापार समूह में यह समझ बढ़ रही है कि साझी मान्यताएं - जो इस विचार से उत्पन्न होती है कि परोपकार ही अच्छा व्यापार है - स्वस्थ, बेहतर शिक्षित, और अधिक संपन्न जन समूह को समर्थन देकर विकसित की जा सकती है। व्यापार जगत के लिए यह अनिवार्य नहीं कि उसका मुनाफा समुदाय हित की अनदेखी कर के ही प्राप्त किया जाए। वास्तव में, उनका मुनाफा स्थानीय समुदाय और वहां रहने वाले लोगों की बेहतर सेवा और मदद करके भी कमाया जा सकता है। एक पैनल चर्चा के दौरान पैनलिस्ट्स ने चर्चा की, कि कैसे व्यवसायी और उद्योगपति यूनिसेफ और एनएसई जैसे संगठनों के साथ मिलकर बच्चों और युवाओं के हित के लिए समाधान खोज सकते हैं। चर्चा में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि किस तरह व्यवसाय लिंग भेद का मुकाबला करने के लिए अधिक कार्य कर सकते हैं, और ऐसी सामाजिक बाधाओं का विरोध कर सकते हैं जो कार्यस्थल में लैंगिक असमानताओं को मजबूत करती हैं। पैनलिस्टों ने इस बात पर भी गौर किया कि विश्व में किशोरों और युवाओं की तेज़ी से बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए कार्यकुशलता में कमी को पूरा करने के लिए शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण में तत्काल निवेश की आवश्यकता है।
एनएसई के एमडी और सीईओ, श्री विक्रम लिमये ने कहा, “आने वाले समय में नवीन सामाजिक उद्यमों, सहकारी समितियों, स्वयं सहायता समूहों, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप जैसे सब को साथ लेकर चलने वाले व्यापार मॉडलों पर एक केंद्रित रणनीति तैयार करने कि आवश्यकता है, जिससे महिलाओं, बुजुर्गों और हाशिए पर रहने वाले अन्य वंचित वर्गों का वित्तीय सशक्तिकरण होगा। इस तरह के निष्पक्ष व्यवसाय मॉडल की नवरचना देश के आर्थिक विकास को एक नयी दिशा देगी, ताकि कारोबार का लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंचे। एनएसई फाउंडेशन के माध्यम से एनएसई दृढ़ता से उन नए और केंद्रित कदमों का समर्थन करने में विश्वास रखता है जो हाशिए और वंचित समुदायों के सबसे गरीब लोगों को प्रभावित करते हैं, जो आज भारत के विकास की तस्वीर का हिस्सा हैं।"
ओयो रूम्स के सीईओ और संस्थापक श्री रितेश अग्रवाल ने कहा, “हम जैसे युवा जो कर सकते हैं, उसकी क्षमता की कोई सीमा नहीं है। हमें ज़रूरत है सही अवसर और कौशल की। मैं हर तरह से यूनिसेफ के प्रयासों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।" वर्तमान परिवेश में युवा लोगों में समान निवेश ही सबसे अच्छा और मूल्यवान लम्बी अवधि का निवेश है, जो सरकारें और व्यवसाय कर सकते हैं। युवा लोगों में निवेश करना वास्तव में उपयोगी है, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था और समाज को सकारात्मक लाभ मिलते हैं।
इस सप्ताह की शुरुआत में नई दिल्ली में यूनिसेफ ने नीति आयोग के साथ मिलकर 'युवाह!' का शुभारंभ किया। यह युवाओं, सरकार, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र को एक साथ लाने वाला मंच है, जिसका उद्देश्य है ऐसे समाधान खोजना जो युवाओं के लिए आवश्यक बदलावों में तेजी ला सके।
संपादकों के लिए टिपप्णी
सुश्री फोर, जो 1 जनवरी 2018 को संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की सातवीं कार्यकारी निदेशक बनीं, उन्हें सार्वजनिक विकास, निजी क्षेत्र और गैर-लाभकारी क्षेत्र में आर्थिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, मानवीय सहायता और आपदा राहत में अपने काम व नेतृत्व के लिए जाना जाता है।
अपने चार दशक से अधिक के कार्यकाल में, सुश्री फोर ने 2007 से 2009 तक एडमिनिस्ट्रेटर ऑफ़ यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) और डायरेक्टर ऑफ़ यूनाइटेड स्टेट्स फॉरेन असिस्टेंस के रूप में कार्य किया। 2009 में उन्हें डिस्टिंग्विशड सर्विस अवार्ड (विशिष्ट सेवा का पुरस्कार) मिला, जो कि संयुक्त राज्य अमरीका के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है।
2005 से 2007 तक, उन्होंने अंडर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर मैनेजमेंट के रूप में काम किया, जो कि डिपार्टमेंट ऑफ़ स्टेट के चीफ ऑपरेटिंग अफसर हैं।
कृपया उनके शैक्षिक अभिलेख और कार्य अनुभव के लिए यह लिंक (link to her CV) देखें।
यस बैंक संकटः कितना पड़ेगा निवेशकों पर असर और कहां हैं दिक्कतें?
आखिरकार, वह दिन आ गया जब लगातार परामर्श और समीक्षा के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ( RBI ) ने यस बैंक पर मौद्रिक सीमा लगा दी। यह पहली बार है जब आरबीआई ने इतने बड़े बैंक पर मौद्रिक सीमा लगाई है। यस बैंक देश का पांचवा सबसे बड़ा निजी बैंक है। पांच मार्च 2020 को आरबीआई ने खाताधारकों के लिए पैसों की निकासी की सीमा 50,000 रुपये पर तय कर दी। निकासी की यह सीमा 3 अप्रैल, 2020 तक लागू रहेगी। साथ ही केंद्रीय बैंक ने यस बैंक के निदेशक मंडल के अधिकारों पर भी रोक लगाई है।
राहत की उम्मीद और इंतजार
अटकलों के बीच भारतीय निवेशकों पर क्या सीमा है आरबीआई और सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक ( SBI ) को संकट से जूझ रहे यस बैंक को खरीदने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए मंजूरी दे दी है। एसबीआई ने स्टॉक एक्सचेंज को सूचित किया कि उसने बैंक में निवेश के लिए इन-प्रिंसिपल अप्रूवल यानी सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है।
भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई वाले कंसोर्टियम को सरकार से मंजूरी मिली है। एलआईसी भी निवेश के अवसर तलाशेगी। इसके अलावा केंद्रीय बैंक ने एसबीआई के पूर्व उप प्रबंध निदेशक और सीएफओ प्रशांत कुमार की प्रशासक के रूप में नियुक्ति भी कर दी है। वे यस बैंक की बुक्स की जांच करेंगे, ताकि बैंक की वित्तीय स्थिति की स्पष्ट तस्वीर सामने आए। इस प्रक्रिया के बाद ही आरबीआई को इस संकट की गहराई पर स्पष्टता मिलेगी।
आखिर कहां हुई गलती ?
शासन के मुद्दे और संपत्ति की गुणवत्ता के खुलासे पर दिक्कतें सामने आईं। आरबीआई ने यस बैंक द्वारा जारी एनपीए के आंकड़े और केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाए गए नियमों के अनुसार एनपीए के आंकड़े में अंतर पाया।
इन चिंताओं के बीच साल 2018 में आरबीआई ने यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर को पद छोड़ने के लिए कह दिया था। एक रणनीतिक निवेशक को खोजने के असफल प्रयासों के बाद बैंक की वित्तीय प्रणाली को नुकसान ना पहुंचाने के लिए आरबीआई ने मौद्रिक सीमा लगा दी।
केंद्रीय बैंक और सरकार जमाकर्ताओं की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए मामले का समाधान तेजी से निकाल रहे हैं। हमेशा की तरह निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। अगर एतिहासिक रूप से देखा जाए, तो बैंकों पर लगी मौद्रिक सीमा के लगभग हर मामले में निवेशकों को ही नुकसान उठाना पड़ा है। इस मामले में दोनों इक्विटी और म्यूचुअल फंड निवेशकों को नुकसान हो सकता है, जिन्होंने कर्ज योजनाओं में निवेश किया है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
आखिरकार, वह दिन आ गया जब लगातार परामर्श और समीक्षा के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ( RBI ) ने यस बैंक पर मौद्रिक सीमा लगा दी। यह पहली बार है जब आरबीआई ने इतने बड़े बैंक पर मौद्रिक सीमा लगाई है। यस बैंक देश का पांचवा सबसे बड़ा निजी बैंक है। पांच मार्च 2020 को आरबीआई ने खाताधारकों के लिए पैसों की निकासी की सीमा 50,000 रुपये पर तय कर दी। निकासी की यह सीमा 3 अप्रैल, 2020 तक लागू रहेगी। साथ ही केंद्रीय बैंक ने यस बैंक के निदेशक मंडल के अधिकारों पर भी रोक लगाई है।
राहत की उम्मीद और इंतजार
अटकलों के बीच आरबीआई और सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक ( SBI ) को संकट से जूझ रहे यस बैंक को खरीदने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए मंजूरी दे दी है। एसबीआई ने स्टॉक एक्सचेंज को सूचित किया कि उसने बैंक में निवेश के लिए इन-प्रिंसिपल अप्रूवल यानी सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है।
भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई वाले कंसोर्टियम को सरकार से मंजूरी मिली है। एलआईसी भी निवेश के अवसर तलाशेगी। इसके अलावा केंद्रीय बैंक ने एसबीआई के पूर्व उप प्रबंध निदेशक और सीएफओ प्रशांत कुमार की प्रशासक के रूप में नियुक्ति भी कर दी है। वे यस बैंक की बुक्स की जांच करेंगे, ताकि बैंक की वित्तीय स्थिति की स्पष्ट तस्वीर सामने आए। इस प्रक्रिया के बाद ही आरबीआई को इस संकट की गहराई पर स्पष्टता मिलेगी।
आखिर कहां हुई गलती ?
शासन के मुद्दे और संपत्ति की गुणवत्ता के खुलासे पर दिक्कतें सामने आईं। आरबीआई ने यस बैंक द्वारा जारी एनपीए के आंकड़े और केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाए गए नियमों के अनुसार एनपीए के आंकड़े में अंतर पाया।
इन चिंताओं के बीच साल 2018 में आरबीआई ने यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर को पद छोड़ने के लिए कह दिया था। एक रणनीतिक निवेशक को खोजने के असफल प्रयासों के बाद बैंक की वित्तीय प्रणाली को नुकसान ना पहुंचाने के लिए आरबीआई ने मौद्रिक सीमा लगा दी।
केंद्रीय बैंक और सरकार जमाकर्ताओं की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए मामले का समाधान तेजी से निकाल रहे हैं। हमेशा की तरह निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। अगर एतिहासिक रूप से देखा जाए, तो बैंकों पर लगी मौद्रिक सीमा के लगभग हर मामले में निवेशकों को ही नुकसान उठाना पड़ा है। इस मामले में दोनों इक्विटी और म्यूचुअल फंड निवेशकों को नुकसान हो सकता है, जिन्होंने कर्ज योजनाओं में निवेश किया है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
अमेरिकी शेयर बाजार में कैसे करें निवेश, क्या ये सही समय है?
एक वित्तीय वर्ष में 2,50,000 डॉलर यानी करीब 1 करोड़ 80 लाख रुपये भारतीय सीमा के बाहर निवेश कर सकते हैं.
जबरदस्त रिटर्न के लिए अच्छी और मुनाफा बनाने वाली कंपनी की तलाश हर निवेशक को होती है. हो सकता है ऐसे में आपका मन टेस्ला, अमेजन या नेटफ्लिक्स जैसी कंपनी पर आया हो जो भारतीय बाजार नहीं बल्कि US के बाजार में निवेश के लिए मौजूद है. आइए ऐसे में समझते हैं एक भारतीय निवेशक के लिए अमेरिकी बाजार में निवेश से जुड़े विभिन्न पहलुओं को-
अमेरिका में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर पैकेज के ऐलान के बाद S&P 500 इंडेक्स अप्रैल में पहली बार 4,000 का स्तर पार कर गया.
कितना बड़ा है US स्टॉक मार्केट?
अमेरिकी शेयर बाजार दुनिया का सबसे बड़ा इक्विटी मार्केट है. US के दो बड़े स्टॉक एक्सचेंज, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और नैस्डैक में अमेजन, टेस्ला, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, इत्यादि विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों के शेयर लिस्टेड हैं. अमेरिकी बाजार से जुड़े विभिन्न इंडेक्स जैसे S&P 500 इंडेक्स, डाउ जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज और नैस्डैक कंपोजिट इंडेक्सों का इस्तेमाल निवेशकों की दृष्टि से US और विश्व की अर्थव्यस्था को समझने के लिए किया जाता है. साथ ही दुनिया के दूसरे बाजारों पर भी इनकी दिशा का बड़ा असर होता है. दूसरे देशों की कंपनियां भी विभिन्न वजहों से अपनी लिस्टिंग US बाजार में करवाती है.
निवेश के क्या हो सकते हैं फायदे?
निवेशक हमेशा रिस्क को कम करने के लिए अपने पोर्टफोलियो में विभिन्न सेक्टर और अलग अलग तरह के स्टॉक्स रखना चाहते हैं. इस दृष्टि से किसी भी बाहरी बाजार में निवेश नए विकल्पों को खोल देता है. US बाजार में कई दूसरे देशों की कंपनियों भी खुद को लिस्ट करवाती है.
बीते वर्षों में अमेरिकी बाजार में भारतीय बाजार की तुलना में कम वोलैटिलिटी देखी गई है. काफी बार रिटर्न के मामले में भी US के बाजार का प्रदर्शन भारतीय बाजार से बेहतर रहा है. रुपये के डॉलर की तुलना में कमजोर होने का भी निवेशकों को फायदा मिल सकता है.
स्टार्टअप हब होने के कारण US में अच्छी क्षमता वाली कंपनियों में शुरुआत में निवेश का मौका होता है. इसी तरह भारत या अन्य बाजारों में कई बड़ी कंपनियों की सब्सिडियरी लिस्ट होती है जबकि US बाजार में सीधे निवेश से ज्यादातर ऐसी कंपनियों में आसानी से निवेश कर सकते हैं.
कैसे कर सकते हैं निवेश शुरु?
US बाजार में निवेश के दो रास्ते हैं.
पहला तरीका सीधे निवेश का है. इसमें निवेशक भारतीय बाजार की तरह ही ब्रोकर के साथ रजिस्ट्रेशन कर स्टॉक्स में खरीद बिक्री कर सकता है. आजकल भारतीय ब्रोकरेज कंपनियां भी अमेरिकी ब्रोकरेज हाउस के साथ करार कर निवेशकों को आसान निवेश की सुविधा देती हैं. निवेशक जरूरी पैन कार्ड, घर के पते को सत्यापित करने वाले ID के साथ सीधे अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी के साथ भी बाजार में व्यापार के लिए रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं.
दूसरा तरीका म्यूचुअल फंड के रास्ते निवेश का हो सकता है. भारत में अनेकों म्यूचुअल फंड US बाजार आधारित फंड चलाते हैं. ऐसे फंड या तो सीधा अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड शेयरों में निवेश करते हैं या ऐसे बाजारों से जुड़े दूसरे म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं. इस प्रक्रिया में किसी अलग तरह के रजिस्ट्रेशन और बाजार के गहरी समझ की जरूरत नहीं है.
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