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तकनीकी विश्लेषण क्या है?

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तकनीकी विश्लेषण का मतलब होता है शेयर के भाव के चार्ट्स की समीक्षा करके भविष्य के उतार-चढ़ाव की जानकारी पता करना। यह समझना जरूरी है कि तकनीकी विश्लेषण पूरी तरह से शेयर की कीमतों पर आधारित होता है। कंपनी की मूलभूत जानकारियों, जैसे मुनाफा, बिक्री, कर्ज, का इस्तेमाल तकनीकी विश्लेषण में नहीं किया जाता है। साथ ही, विश्लेषण करते समय माना जाता है कि बाजार से जुड़ी और दूसरी सभी जानकारी उपलब्ध हैं और उनका इस्तेमाल शेयर का चार्ट बनाते वक्त किया गया है।

तकनीकी विश्लेषण का मुख्य सिद्धांत है कि शेयर बाजार पूरी तरह से पारदर्शीय है और बाजार के सभी प्रतिभागी कुशल हैं। बिना किसी ठोस कारण के शेयरों की खरीद-फरोख्त तकनीकी विश्लेषण सिद्धांतों के खिलाफ है। फंडामेंटल विश्लेषण के मुकाबले तकनीकी विश्लेषण में ज्यादा लचीलापन है। फंडामेंटल विश्लेषण शेयरों के उतार-चढ़ाव को जानने के लिए तिमाही नतीजों, आय पर गाइडेंस और कंपनी नीतियों में बदलाव पर निर्भर करता है।

भारत में महिला आंदोलन

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में महिला आंदोलन के बारे में । इस Topic के जरिए हम जानेंगे कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में महिलाओं से संबंधित विभिन्न आंदोलन कहां तक अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल रहे ।

परिचय

ऋग्वेद कालीन भारत में स्त्री का स्थान काफी सम्मानजनक था और स्त्री शिक्षा से वंचित नहीं थी और पर्दे का कोई विवाद नहीं था और स्त्री को अपना वर्क चने का अधिकार था । परंतु उत्तर वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति धीरे-धीरे गिरती गई । इसके बाद आया मध्य काल और मध्य काल में भारत पर इस्लामी आक्रमण हुआ और भारत पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा । हिंदुओं में बाल विवाह और प्रदा प्रथा शुरू हो गई । नारियों का अपमान किया जाने लगा । नारी की रक्षा के लिए पर्दे को जरूरी माना गया और तभी से पर्दा प्रथा का आरंभ हुआ और कुछ राजपूत घरानों में कन्याओं की हत्या भी की जाने लगी । इसके बाद सती प्रथा शुरू हो गई ।

भारत में महिला आंदोलन

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में महिला आंदोलन के बारे में । इस Topic के जरिए प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है हम जानेंगे कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में महिलाओं से संबंधित विभिन्न आंदोलन कहां तक अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल रहे ।

परिचय

ऋग्वेद कालीन भारत में स्त्री का स्थान काफी सम्मानजनक था और स्त्री शिक्षा से वंचित नहीं थी और पर्दे का कोई विवाद नहीं था और स्त्री को अपना वर्क चने का अधिकार था । परंतु उत्तर वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति धीरे-धीरे गिरती गई । इसके बाद प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है आया मध्य काल और मध्य काल में भारत पर इस्लामी आक्रमण हुआ और भारत पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा । हिंदुओं में बाल विवाह और प्रदा प्रथा शुरू हो गई । नारियों का अपमान किया जाने लगा । नारी की रक्षा के लिए पर्दे को जरूरी माना गया और तभी से पर्दा प्रथा का आरंभ हुआ और कुछ राजपूत घरानों में कन्याओं की हत्या भी की जाने लगी । इसके बाद सती प्रथा शुरू हो गई ।

प्रेम राशिफल और ग्रह (Love Rashifal):

ज्योतिष में नवग्रहों प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है को प्रमुख स्थान प्राप्त हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के प्रमुख क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं, प्रेम का भाव शुक्र द्वारा शासित है। इस प्रकार यह ग्रह आपके जीवन में प्यार एवं रोमांस को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार है।

  • प्रेम का कारक ग्रह शुक्र व्यक्ति को आकर्षक और मनमोहक बनाता है।
  • शुक्र सुंदरता का ग्रह है, इसलिए यह किसी के व्यक्तित्व के साथ-साथ किसी के रूप को भी प्रभावित करता है, दोनों ही जीवन में प्यार पाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
  • शुक्र ग्रह प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है व्यक्ति को भावुक, रोमांटिक और स्नेही भी बनाता है। यही कारण है कि किसी की राशि में शुक्र की शुभ और अशुभ स्थिति उनके प्रेम जीवन के निर्धारण में महत्वपूर्ण होता है।

एस्ट्रोयोगी आपके प्रेमजीवन के लिए आपका प्रेम राशिफल (Prem Rashifal Love Rashifal)प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है लेकर आया है। चाहे आप प्यार में हों, प्यार की तलाश में हों, या सिंगल व्यक्ति के रूप में अपने जीवन का आनंद ले रहे हों, ये राशिफल आपका मार्गदर्शन करेगा कि आप अपने रिलेशनशिप को कैसे बेहतर बना सकते है? या अपनी राशि के अनुसार "जीवनसाथी" कैसे खोजें।

गीता में है संसार की समस्त शुभता

by WEB DESK

श्रीमद्भगद्गीता

भगवान् श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में मोहग्रस्त अर्जुन को गीता का ज्ञान प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है दिया। उन्हांने कर्म का वह महामंत्र प्रदान किया, जो मानव जाति के लिए कल्याणकारी और पथ-प्रदर्शक है। श्रीकृष्ण ने गीता में नश्वर भौतिक शरीर और नित्य आत्मा के मूलभूत अंतर को समझाया है। कहा है कि आत्मा अजर और अमर है। जिस प्रकार प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, उसी प्रकार आत्मा जीर्ण शरीर को त्यागकर नए शरीर में प्रवेश करती है। अतः मनुष्य को कल की चिंता किए बिना कर्तव्य का पालन करना चाहिए। सफलता और असफलता के प्रति समान भाव रखकर कार्य करना ही श्रेयस्कर है। यही कर्मयोग है।
श्रीकृष्ण के उपदेश गीता के अमृत वचन हैं। उनके उपदेश से ही कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े बंधु-बांधवों से अर्जुन का मोह दूर हुआ। तत्पश्चात् वे अधर्मी और दुर्बल हृदय वाले कौरवों को पराजित करने में सफल हुए। कौरवों की हार केवल पांडवों की विजय भर नहीं, बल्कि धर्म की अधर्म पर, न्याय की अन्याय पर और सत्य की असत्य पर जीत है। श्रीकृष्ण ने गीता में धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य और न्याय-अन्याय को सुस्पष्ट किया है। उन्होंने धृतराष्ट्र पुत्रों को अधर्मी, पापी और अन्यायी तथा पांडु पुत्रों को पुण्यात्मा कहा है। उन्होंने संसार के लिए क्या ग्राह्य और क्या त्याज्य है उसे भलीभाँति समझाया है। श्रीकृष्ण के उपदेश ज्ञान, भक्ति और कर्म का सागर है। भारतीय चिंतन और धर्म का निचोड़ है। सारे संसार और मानव जाति के कल्याण का मार्ग है। विश्व के महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा भी है कि श्रीकृष्ण के उपदेश अद्वितीय हैं। उन्हें पढ़कर ही मनुष्य को ज्ञान हुआ कि इस दुनिया का निर्माण कैसे हुआ। महात्मा गांधी ने भी कहा है कि जब मुझे कोई परेशानी घेर लेती है, मैं गीता प्रवृत्ति विश्लेषण क्या है के पन्नों को पलटता हूं। महान दार्शनिक श्री अरविंदो ने कहा कि भगवद्गीता एक धर्मग्रंथ और एक पुस्तक न होकर एक जीवनशैली है, जो हर उम्र को अलग संदेश और हर सभ्यता को अलग अर्थ समझाती है। संसार की समस्त शुभता इसी में विद्यमान है। उनके उपदेश जगत् कल्याण का सात्विक मार्ग हैं। श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में खड़े अर्जुन रूपी जीव को धर्म, समाज, राष्ट्र, राजनीति और कूटनीति की शिक्षा दी है। प्रजा के प्रति शासक के आचरण-व्यवहार और कर्म के ज्ञान को उद्घाटित किया है। श्रीकृष्ण के उपदेश कालजयी और संसार के लिए कल्याणकारी हैं। युद्ध और विनाश के मुहाने पर खड़े संसार को संभलने का संबल है। अत्याचार और राजनीतिक कुचक्र को किस तरह सात्विक बुद्धि से हराया जाता है महाभारत उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर सत्य का पक्ष लिया।
श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन अत्याचार और अहंकार के विरुद्ध एक संघर्ष है। बाल्यावस्था से ही वे अलौकिक थे। किंतु उनकी अलौकिकता में जगतकल्याण की भावना निहित है। श्रीकृष्ण उन बंधी-बंधाई धारणाओं और परंपराओं को, जो राष्ट्र-समाज के लिए अहितकर हैं उन्हें तोड़ने में हिचक नहीं दिखाते हैं। वे तत्कालीन निरंकुश शासकों की भोगवादी और वर्चस्ववादी जीवनशैलियों के विरुद्ध आवाज बुलंद करते हैं। जनता को अत्याचार से लड़ने का संदेश देते हैं। इसके साथ ही सभी मनुष्यों और प्राणियों के प्रति उनका एकात्मभाव देखते ही बनता है। उनकी हर क्रिया में जगत् का कल्याण निहित है। उन्होंने संसार को संदेश दिया है कि दुर्योधन, कर्ण, विकर्ण, जयद्रथ, कृतवर्मा, शल्य, अश्वथामा जैसे अहंकारी और अत्याचारी जीव राष्ट्र-राज्य के लिए शुभ नहीं होते। वे सत्ता और ऐश्यर्य के लोभी होते हैं। धृतराष्ट्र केवल जन्म से ही अंधा नहीं था, बल्कि वह आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से भी अंधा था। उसका सत्तामोह और पुत्र के प्रति आसक्ति का परिणाम रहा कि हस्तिानापुर विनाश को प्राप्त हुआ। धृतराष्ट्र तथा उसके स्वार्थी-अभिमानी पुत्रों में ये सभी अवगुण विद्यमान थे। श्रीकृष्ण ने विष देने वाला, घर में अग्नि लगाने वाला, घातक हथियार से आक्रमण करने वाला, धन लूटने वाला, दूसरों की भूमि हड़पने वाला और पराई स्त्री का अपहरण करने वाले राजाओं को अधम और आततायी कहा है। धृतराष्ट्र के पुत्र ऐसे ही थे। सत्ता में बने रहने के लिए वे सदैव पांडु पुत्रों के विरुद्ध षड्यंत्र रचा करते थे। अनेक बार उनकी हत्या के प्रयत्न किए।
श्रीकृष्ण ने ऐसे पापात्माओं और नराधमों को वध के योग्य बताया है। समाज को प्रजावत्सल शासक चुनने का संदेश दिया है। अहंकारी, आततायी, भोगी और संपत्ति संचय में लीन रहने वाले आसुरी प्रवृत्ति के शासकों को राष्ट्र के लिए अशुभ और आघातकारी माना है। कहा है कि ऐसे शासक प्रजावत्सल नहीं सिर्फ प्रजाहंता होते हैं।

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