(iii) भाषा-शैली - सरकारी पत्रों की भाषा शैली पर ध्यान रखते हुए सरल और परिमार्जित भाषा का प्रयोग करते हुए छोटे वाक्यों का प्रयोग किया जाना चाहिये, जिससे कि पत्र से एक अर्थ के अलावा दूसरा अर्थ न निकाला जा सके।

देवनागरी लिपि की विशेषताएँ PDF Hindi

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देवनागरी लिपि का सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात के राजा जय भट्ट के एक शिलालेख में हुआ है। यह लिपि हिंदी प्रदेश के अतिरिक्त महाराष्ट्र व नेपाल में प्रचलित है गुजरात में सर्वप्रथम प्रचलित होने से वहां के पंडित वर्ग अर्थात नगर ब्रह्मांणों के नाम से इसे नागरे कहां गया। देव भाषा संस्कृत में इसका प्रयोग होने से इसके साथ जो शब्द जुड़ गया। देवताओं की उपासना के लिए जो संकेत बनाए जाते थे उन्हें देवनगर कहते थे। वे संकेत लिपि के समान थे वहीं से इसे देवनागरी कहा जाने लगा।

देवनागरी की लिपि की विशेषता

  • लिपि चिह्नों के नाम ध्वनि के अनुसार– इस लिपि में चिह्नों के द्योतक उसके ध्वनि के अनुसार ही होते हैं और इनका नाम भी उसी के अनुसार होता है जैसे- अ, आ, ओ, औ, क, ख आदि। किंतु रोमन लिपि चिह्न नाम में आई किसी भी ध्वनि का कार्य करती है, जैसे- भ्(अ) ब्(क) ल्(य) आदि। इसका एक कारण यह हो सकता है कि रोमन लिपि वर्णात्मक है और देवनागरी ध्वन्यात्मक।
  • लिपि चिह्नों की अधिकता – विश्व के किसी भी लिपि में इतने लिपि प्रतीक नहीं हैं। अंग्रेजी में EMA की विशेषताएँ ध्वनियाँ 40 के ऊपर है किंतु केवल 26 लिपि-चिह्नों से काम होता है। ‘उर्दू में भी ख, घ, छ, ठ, ढ, ढ़, थ, ध, फ, भ आदि के लिए लिपि चिह्न नहीं है। इनको व्यक्त करने के लिए उर्दू में ‘हे’ से काम चलाते हैं’ इस दृष्टि से ब्राह्मी से उत्पन्न होने वाली अन्य कई भारतीय भाषाओं में लिपियों की संख्याओं की कमी नहीं है। निष्कर्षत: लिपि चिह्नों की पर्याप्तता की दृष्टि से देवनागरी, रोमन और उर्दू से अधिक सम्पन्न हैं।
  • स्वरों के लिए स्वतंत्र चिह्न – देवनागरी में ह्स्व और दीर्घ स्वरों के लिए अलग-अलग चिह्न उपलब्ध हैं और रोमन में एक ही (।) अक्षर से ‘अ’ और ‘आ’ दो स्वरों को दिखाया जाता है। देवनागरी के स्वरों में अंतर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
  • व्यंजनों की आक्षरिकता – इस लिपि के हर व्यंजन के साथ-साथ एक स्वर ‘अ’ का योग रहता है, जैसे- च्+अ= च, इस तरह किसी भी लिपि के अक्षर को तोड़ना आक्षरिकता कहलाता है। इस लिपि का यह एक अवगुण भी है किंतु स्थान कम घेरने की दृष्टि से यह विशेषता भी है, जैसे- देवनागरी लिपि में ‘कमल’ तीन वर्णों के संयोग से लिखा जाता है, जबकि रोमन में छ: वर्णों का प्रयोग किया जाता है!
  • EMA की विशेषताएँ
  • सुपाठन एवं लेखन की दृष्टि– किसी भी लिपि के लिए अत्यन्त आवश्यक गुण होता है कि उसे आसानी से पढ़ा और लिखा जा सके इस दृष्टि से देवनागरी लिपि अधिक वैज्ञानिक है। उर्दू की तरह नहीं, जिसमें जूता को जोता, जौता आदि कई रूपों में पढ़ने की गलती अक्सर लोग करते हैं।
  • यह लिपि भाषा के अंतर्गत आने वाले अधिक से अधिक चिन्हों से संपन्न है। जिसमें परंपरागत रूप से 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं। इसके अतिरिक्त ड़, ढ़, क़, ख़, ग़, ज़, फ़ इन ध्वनियों के लिए भी चिन्ह बने हैं। क्ष, त्र, ज्ञ, श्र संयुक्त व्यंजनों के लिए अलग चिन्ह है।
  • यह लिपि समस्त प्राचीन भारतीय भाषाओं जैसे- संस्कृत, प्राकृत, पाली एवं अपभ्रंश की भी लिपि रही है।
  • जो लिपि चिन्ह जिस ध्वनि का घोतक है उसका नाम भी वही है जैसे- आ, EMA की विशेषताएँ EMA की विशेषताएँ इ, क, ख आदि। इस दृष्टि से रोमन लिपि में पर्याप्त भ्रम की स्थिति विद्यमान है। जैसे – C, H, G, W आदि।
  • हिंदी में ऋ – रि, श – ष, को छोड़कर शेष सभी ध्वनियों के लिए स्वतंत्र लिपि चिन्ह है।

टेलीकांफ्रेंसिंग का अर्थ और टेलीकांफ्रेंसिंग की विशेषताएँ(meaning of teleconferenceing)

टेलीकांफ्रेंसिंग का अर्थ-meaning of teleconferenceing,teleconferenceing

टेलीकांफ्रेंसिंग का अर्थ(meaning of teleconferenceing)-
दूरवर्ती शिक्षा के लिए शैक्षिक टेलीकांफ्रेंसिंग एक महत्वपूर्ण माध्यम है।इसमें कई प्रकार के माध्यमो का प्रयोग किया जाता है।और द्वि-पक्षीय प्रसारण द्वारा परस्पर कार्यशील सामूहिक सम्प्रेषण की सुविधा प्रदान की जाती है।

EMA की विशेषताएँ

हिंदी साहित्य के इतिहास में प्रगतिवाद को भौतिक जीवन से उदासीन, आत्मनिर्भर, सूक्ष्म और अंतर्मुखी प्रवृत्तियों के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में व्यक्त किया गया है। अन्य शब्दों में कहा जाये, तो प्रगतिवाद लोक के विरुद्ध स्थूल जगत की तार्किक प्रतिक्रिया है। प्रगतिवाद को मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद से प्रेरणा प्राप्त हुई थी। सामाजिक चेतना और भावबोध प्रगतिवादी काव्य की अनूठी विशेषता है। प्रगतिवादी काव्य में सामाजिक विचारधारा के साम्यवादी स्वर को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। कुछ विद्वानों का कथन है कि राजनीति के क्षेत्र में जो साम्यवाद है, साहित्य के क्षेत्र में वही प्रगतिवाद है। मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित प्रगतिवादी कवि आर्थिक विषमता को वर्तमान दुःख और अशांति का कारण बताते थे। आर्थिक विषमता के परिणामस्वरूप समाज दो भागों में बँट चुका था– पूँजीपति वर्ग या शोषक वर्ग तथा शोषित वर्ग या सर्वहारा वर्ग। प्रगतिवाद अर्थ, अवसर तथा संसाधनों के समान वितरण के द्वारा ही समाज की उन्नति में विश्वास रखता है। सामान्य जन की प्राण प्रतिष्ठा, श्रम की गरिमा, सामाजिक लोगों के सुख-दुख आदि को प्रस्तुत करना प्रगतिवादी काव्य का प्रमुख लक्ष्य है। प्रगतिवादी काव्य में शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव व्यक्त किया गया है। यह काव्य उपयोगितावाद और भौतिक दर्शन से EMA की विशेषताएँ प्रभावित है। इस कारण यह प्रगतिवादी काव्य नैतिकता और भावुकता की अपेक्षा बुद्धि व विवेक पर अधिक विश्वास रखता है।

प्रगतिवाद की विशेषताएँ

प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
1. शोषक-वर्ग के प्रति विद्रोह एवं शोषित-वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव– प्रगतिवादी कवियों ने शोषित-वर्ग जैसे- किसानों, मजदूरों आदि पर किये जाने वाले अत्याचारों के प्रति विरोध व्यक्त किया है। उन्होंने अपने काव्य में शोषक वर्ग जैसे- पूँजीपतियों आदि के प्रति विद्रोह व्यक्त किया है।
2. आर्थिक एवं सामाजिक समानता की प्रधानता– प्रगतिवादी काव्य में साहित्यकारों ने आर्थिक और सामाजिक समानता पर बल दिया है। उन्होंने निम्न वर्ग एवं उच्च वर्ग के अंतर को समाप्त करने के भाव व्यक्त किए हैं। उन्होंने कविताओं के माध्यम से आर्थिक व सामाजिक समानता EMA की विशेषताएँ के महत्व को प्रतिपादित किया है।
3. नारी के प्रति सम्मान एवं नारी शोषण का विरोध– प्रगतिवादी कवियों ने नारी को सम्मानजनक स्थान प्रदान किया है। उन्होंने अपने काव्यों में नारी को शोषण से मुक्त कराने के भाव व्यक्त किए हैं। उनका मानना है कि समाज तभी उन्नति कर सकता है, जब नारी को सम्मानजनक स्थान प्राप्त होगा।
4. ईश्वर के प्रति अनास्था के भाव– प्रगतिवादी कवियों ने ईश्वर के प्रति अनास्था के भाव व्यक्त किए हैं। वे ईश्वरीय शक्ति की अपेक्षा मानवीय शक्ति को प्रधानता देते हैं। इन कवियों की रचनाएँ यथार्थवादी हैं।
5. सामाजिक यथार्थ का चित्रण– प्रगतिवादी कवियों की रचनाओं में व्यक्तिगत सुख-दुख के भावों की अभिव्यक्ति बहुत कम मिलती है। इन कवियों ने समाज की गरीबी, भुखमरी, अकाल, बेरोजगारी आदि सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास किये हैं।
6. काव्य में प्रतीकों का उपयोग– अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए प्रगतिवादी कवियों ने अपने काव्यों में प्रतीकों का EMA की विशेषताएँ प्रयोग किया है।
7. भाग्य की अपेक्षा कर्म को अधिक महत्व– प्रगतिवादी कवियों ने अपनी रचनाओं में श्रम की महत्ता का प्रतिपादन किया है। उन्होंने भाग्यवाद को पूँजीवादी शोषण का हथियार बताया है।

कहानी का अर्थ परिभाषा विशेषताएँ

यहाँ हिन्दी के विद्वानों का कहानी के सन्दर्भ में विचार जानना आवश्यक है। अतः अब EMA की विशेषताएँ हम भारतीय विद्वानों के कहानी संबधी दृष्टिकोण पर विचार करते हैं। मुंशी प्रेमचन्द के अनुसार , “ कहानी (गल्प) एक रचना है , जिसमें जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का EMA की विशेषताएँ उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र , उसकी शैली तथा कथा - विन्यास सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं। ”

  • बाबू श्यामसुन्दर दास का मत है कि , “ आख्यायिका एक निश्चित लक्ष्य या प्रभाव को लेकर नाटकीय आख्यान है।"
  • बाबू गुलाबराय का विचार है कि , “ छोटी कहानी एक स्वतः पूर्ण रचना है जिसमें एक तथ्य या प्रभाव को अग्रसर करने वाली व्यक्ति-केंद्रित घटना या घटनाओं के आवश्यक , परन्तु कुछ-कुछ अप्रत्ययाशित ढंग से उत्थान-पतन और मोड़ के साथ पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाला कौतूहलपूर्ण वर्णन हो। ”
  • इलाचन्द्र जोशी के अनुसार "जीवन का चक्र नाना परिस्थितियों के संघर्ष से उल्टा सीधा चलता रहता है। इस सुवृहत् चक्र की किसी विशेष परिस्थिति की स्वभाविक गति को प्रदर्शित करना ही कहानी की विशेषता है।"
  • जयशंकर प्रसाद कहानी को सौन्दर्य की झलक का रस 'प्रदान करने वाली मानते हैं।
  • रायकृष्णदास कहानी को ‘ किसी न किसी सत्य का उद्घाटन करने वाली तथा मनोरंजन करने वाली विधा कहते हैं।
  • ' अज्ञेय ' कहानी को ' जीवन की प्रतिच्छाया ' मानते है तो जैनेन्द्र की कोशिश करने वाली एक भूख ' कहते हैं। कुमार ' निरन्तर समाधान पाने

कहानी की विशेषताएँ

1. कहानी एक कथात्मक संक्षिप्त गद्य रचना है , अर्थात कहानी आकार में छोटी होती है जिसमें कथातत्व की प्रधानता होती है।

2. कहानी में ' प्रभावान्विति ' होती है अर्थात् कहानी में विषय के एकत्व प्रभावों की एकता का होना भी बहुत आवश्यक है।

3. कहानी ऐसी हो , जिसे बीस मिनट , एक घण्टा या एक बैठक में पढ़ा जा सके। 4. कौतूहल और मनोरंजन कहानी का आवश्यक गुण है।

5. कहानी में जीवन का यर्थाथ होता है , वह यर्थाथ जो कल्पित होते हुए भी सच्चा लगे ।

6. कहानी में जीवन के एक तथ्य का , एक संवेदना अथवा एक स्थिति का प्रभावपूर्ण चित्रण होता है।

7. कहानी में तीव्रता और गति आवश्यक है जिस कारण विद्वानों ने उसे 100 गज की दौड़ कहा है। अर्थात कहानी आरम्भ हो और शीघ्र ही समाप्त भी हो जाए।

8. कहानी में एक मूल भावना का विस्तार आख्यानात्मक शैली में होता है।

सरकारी पत्रों के प्रकार

1. सरकारी पत्र
2. अर्ध-सरकारी पत्र
3. ज्ञापन
4. परिपत्र
5. पृष्ठांकन
6. स्मृति पत्र
7. अधिसूचना
8. घोषणा
9. प्रस्ताव या संकल्प
10. प्रेस विज्ञप्ति
11. अध्यादेश
12. त्रुटि सुधार
13. कार्यालय आदेश EMA की विशेषताएँ
14. टैण्डर
15. सूचना

म.प्र. शासन, जनशक्ति नियोजित
विभाग, भोपाल (म.प्र.)

पत्र क्र. विविधि / 00000 / भोपाल, दिनांक DD/MM/2022
प्रति,
संचालक, रोजगार एवं प्रशिक्षण म.प्र.
9, सिविल सेन्टर, मढ़ाताल, जबलपुर।
विषय - प्रशिक्षण स्तर में सुधार लाने बावत्।
सन्दर्भ - केन्द्र सरकार श्रम विभाग का पत्र क्र. 000 दिनांक DD/MM/2022
महोदय,
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भवदीय
abc शर्मा
अवर सचिव
मध्यप्रदेश शासन
जनशक्ति नियोजन विभाग, भोपाल

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