Horoscope February 2022 : कन्या राशि वालों को रहना होगा अपने मूल स्वभाव के अनुकूल, कर सकते हैं निवेश के लिए प्लान
virgo Monthly Horoscope : कन्या राशि वालों के लिए यह माह ( 01 फरवरी 2022 कैसा रहेगा, आइए जानते हैं कन्या राशि का मासिक राशिफल.
By: पं. शशिशेखर त्रिपाठी | Updated at : 01 Feb 2022 05:17 PM (IST)
कन्या राशिफल फरवरी 2022
Virgo Monthly Horoscope - इस माह किए गए प्रयासों में सफलता प्राप्त होगी. माह के दूसरे सप्ताह में किन्हीं परेशानियों को लेकर तनाव का ग्राफ बढ़ेगा, तो वहीं दूसरी ओर निर्णय लेने में दिक्कतों को सामना भी करना पड़ सकता है. इस माह अपने मूल स्वभाव पर रहना है, ऐसे में सभी के साथ सौम्य व्यवहार करें. यह महीना बहुत व्यस्त जाने वाला है, समय के साथ तालमेल मिलाकर चलें. कर्ज के प्रति अलर्ट रहना होगा, तो वहीं अनावश्यक रूप से कर्ज लेने से बचना चाहिए. निवेश करने का प्लान बनाने वालों के लिए माह उपयुक्त रहेगा. धार्मिक यात्राओं की रूप रेखा बनती नजर आ रही है. जिन लोगों का इस माह जन्मदिन हैं, उन्हें अपनों से सरप्राइज गिफ्ट मिल सकता है. माह के अंत तक मन में किहीं बातों को लेकर अहंकार आ सकता है, लेकिन ध्यान रहें यह विवाद का कारण न बने.
आर्थिक एवं करियर- ऑफिस में ज्ञान और कर्तव्यनिष्ठा का पुरस्कार मिलेगा और नौकरी में उच्च पद मिलने की भी संभावनाएं रहेगी. नौकरीपेशा से जुड़े लोगों को इस माह प्रमोशन के संकेत मिल रहें हैं. ग्रहों का अच्छा कांबिनेशन नौकरी में बदलाव कराएंगा परेशान न हो यह बदलाव आर्थिक ग्राफ में ग्रोथ करने वाला है. यदि किन्हीं आवेदन भरा है, तो ऑफर लेटर प्राप्त हो सकता है. जो लोग स्वयं का काम करते हैं उनके कारोबार में स्थितियां सामान्य रहेंगी. व्यापार में बदलाव के विचार भी आएंगे लेकिन कोई भी कदम उठाने से पहले वरिष्ठों से सलाह करनी अति आवश्यक है. लीगल डॉक्यूमेंट में हस्ताक्षर करने से पूर्व अवश्य पढ़े नहीं तो नुकसान हो सकता है. नौकरी की तलाश कर रहें, युवाओं को अच्छा अवसर हाथ लग सकता है.
स्वास्थ्य- स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो इस माह यात्राओं के कारण स्वास्थ्य संबंधी असुविधा का सामना करना पड़ सकता है. इस सप्ताह बैठने का तरीका ठीक रखें, जो लोग लंबे समय तक चेयर पर बैठते हैं उन्हें रीड की हड्डी के अनुकूल चेयर लेनी चाहिए. ज्यादा झुक कर लिखना-पढ़ना आपको स्वाभाविक और समय मूल्य दिक्कतें दे सकती हैं. माह मध्य में पेट दर्द, स्लिप डिस्क, सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस जैसी दिक्कतें भी आपको परेशान कर सकती हैं. ग्रहों की स्थितियों को देखते हुए आपको थोड़ा अलर्ट रहना चाहिए वाहन संभाल के चलाना चाहिए. गर्भवती महिलाओं को अपने खानपान पर ध्यान देने की आवश्यकता है, वर्तमान में ईम्युन कमजोर होने से बीमार पड़ सकती हैं.
परिवार एवं समाज- घर परिवार में स्थितियाँ आपसी टकराव कराने वाली हो सकती है, इसलिए अनावश्यक रूप से विवादित बातों को बढ़ावा देने से बचना चाहिए. घर पर शांति का माहौल बनाए रखने पर फोकस करें, वहीं दूसरी ओर बच्चों के साथ भी अच्छा बर्ताव करें, अत्यधिक क्रोध करने से बचें वरना आपकी मानसिक शांति भंग हो सकती है जिससे आपके साथ-साथ परिवार के लोग भी इस स्थिति से परेशान दिखेंगे. महिलाएं घर की साज-सज्जा पर ध्यान दें, इससे संबंधित कोई वस्तु की खऱीददारी करने की सोच रहें है तो य़ह माह उपयुक्त रहेगा. बड़ों का सम्मान करें, उनकी बातों को अनदेखा न करें. पिता की उन्नति का समय चल रहा है, यदि वह बिजनेस करते हैं तो उनको बड़े मुनाफे हाथ लगेंगे और नौकरी करने वालों का प्रमोशन हो सकता है.
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Published at : 01 Feb 2022 06:17 PM (IST) Tags: Kanya Rashifal monthly Horoscope Monthly Horoscope for virgo हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Astro News in Hindi
मुट्ठी बांधने का तरीका बताता है इंसान का स्वभाव, समुद्र शास्त्र के अनुसार, जानें कैसा है आपका व्यक्तित्व
मुट्ठी बांधने के तरीके से व्यक्ति के स्वभाव, उसके हाव-भाव को जान सकते हैं. कोई व्यक्ति मुट्ठी बंद करते समय अपनी उंगलियो . अधिक पढ़ें
- News18 हिंदी
- Last Updated : December 07, 2022, 03:45 IST
हाइलाइट्स
मुट्ठी बांधने का तरीका व्यक्ति के चरित्र को दर्शाता है.
मुट्ठी बांधने का तरीका व्यक्तित्व के बारे में भी बताता है.
समुद्र शास्त्र में इस बात का उल्लेख मिलता है.
Samudrika Shastra: इंसान का हावभाव उसके आचरण को दर्शाता है. जिस प्रकार हस्तरेखा से किसी व्यक्ति का भविष्य जान सकते हैं, उसी तरह व्यक्ति के मुट्ठी बांधने का तरीका भी उसकी विशेषताएं बताता है. मुट्ठी बांधने के तरीके से व्यक्ति के स्वभाव, उसके हाव-भाव को जान सकते हैं. समुद्र शास्त्र में इस बात का उल्लेख मिलता है. पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि कोई व्यक्ति मुट्ठी बंद करते समय अपनी उंगलियों को जिस प्रकार रखता है, वह उसके चरित्र को दर्शाता है. आइए जानते हैं किस प्रकार मुट्ठी से किसी व्यक्ति का स्वभाव पढ़ा जा सकता है.
अंगूठे पर उंगलियां रखना
समुद्र शास्त्र के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति मुट्ठी बंद करते समय अपनी सभी उंगलियां अपने स्वाभाविक और समय मूल्य अंगूठे पर रखता हैं, तो ऐसे व्यक्ति काफी रचनात्मक और बुद्धिमान होते हैं. यह अपने काम को बखूबी निभाते हैं और पूरा करते हैं. ऐसे व्यक्ति को ज्यादा बात करना पसंद नहीं होता है, पर सबके साथ जल्दी घुल मिल जाते हैं. हालांकि, ऐसे व्यक्ति अगर किसी रिश्ते से खुश नहीं रहते हैं तो उस रिश्ते को यह खत्म कर देते हैं.
सारी उंगलियों पर अंगूठा रखना
इसी तरह अगर कोई व्यक्ति मुट्ठी बंद करने के बाद सभी उंगलियों पर अंगूठा रखता है, तो ऐसे व्यक्ति स्वभाव के अच्छे होते हैं. हर कोई इनके व्यक्तित्व को पसंद करता है. यह दूसरे के व्यवहार के हिसाब से अपना व्यवहार रखते हैं. हालांकि, ऐसे लोग थोड़े भयभीत महसूस करते हैं और कुछ भी करने से पहले बहुत अधिक सोचते हैं. ऐसे लोग दूसरों पर जल्दी भरोसा कर लेते हैं.
एक उंगली पर अंगूठा रखना
समुद्र शास्त्र के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति एक उंगली पर अंगूठा रखता है, तो ऐसे व्यक्ति काफी उत्सुक और जिज्ञासा से भरे रहते हैं. समाज में ऐसे व्यक्ति का नाम और सम्मान होता है. लोग इनके साथ जुड़कर रहते हैं. ऐसे व्यक्ति के बोलने का तरीका लोगों को काफी पसंद आता है. ऐसे व्यक्ति का जीवन काफी खुशहाल रहता है.
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संविधान के मूल ढांचे पर गंभीर बहस का समय
जब हम संविधान के किसी संशोधन से सहमत नहीं हों, तो उसे न्यायालय में ले जाने के बजाय जनता की अदालत में ले जाना चाहिए। आज जब उपराष्ट्रपति ने एक बहस की शुरुआत की है, तो संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत के गुण-दोष पर भी विस्तार से चर्चा होनी चाहिए।
हरबंश दीक्षित
प्रोफेसर एवं डीन, विधि संकाय, तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के हालिया बयान ने एक स्वस्थ बहस की शुरुआत कर दी है कि संविधान संशोधन के मामले में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार संसद को है या उच्चतम न्यायालय को। बीते 2 दिसम्बर को एलएम सिंघवी स्मृति व्याख्यान माला में अपने उद्बोधन में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 2015 के उस निर्णय का हवाला दिया, जिसमें राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग से सम्बन्धित संविधान संशोधन को रद्द कर दिया था। उन्होंने कहा कि इस संविधान संशोधन अधिनियम को लोकसभा और राज्य सभा ने सर्वसम्मति से पारित किया था। वह देश की जनता की भावनाओं की एकजुट अभिव्यक्ति थी। फिर भी अदालत ने उसे खारिज कर दिया। उन्होंने मत व्यक्त किया कि संविधान संशोधनों के मामले में अदालतों को दखल से परहेज करना चाहिए।
राष्ट्रीय न्यायिक आयोग से जुड़े संविधान संशोधन को रद्द करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने तीन कारण दिए थे। पहला यह कि न्यायिक नियुक्तियों में गैर न्यायिक सदस्यों के होने के कारण न्यायपालिका के लोग अल्पमत में आ जाएंगे, जिससे न्यायिक सर्वोच्चता बरकरार नहीं रह पाएगी। दूसरा यह कि न्यायपालिका की जरूरतों के बारे में न्यायपालिका के पास ही समुचित जानकारी और समझ होती है और अन्य लोगों के आने से उसकी गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। तीसरा तथा सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि इससे न्यायिक स्वतंत्रता को चोट पहुंचेगी, जो संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित करेगा। इसलिए यह असंवैधानिक है। उपराष्ट्रपति के उद्बोधन का केन्द्र बिन्दु यह है कि नीतिगत विषयों पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार अपनी सभी तथाकथित वास्तविक या काल्पनिक कमियों के बावजूद हमारे चुने हुए प्रतिनिघियों के हाथ में हो, जो जनता के प्रति जबाबदेह हैं या संविधान के मूल ढांचे की आड़ में हमारे न्यायाधीशों के हाथ में हो, जो अपनी अन्तरात्मा या ईश्वर के प्रति जवाबदेह हैं। संविधान के मूल ढांचे के सिद्धान्त का प्रतिपादन केशवानन्द भारती के ऐतिहासिक मुकदमे में 1973 में हुआ था।
मूल ढांचे के सिद्धांत केवल अस्पष्ट ही नहीं हंै, अपितु उनमें पारस्परिक अन्तर्विरोध भी हैं। इनकी कोई प्रामाणिक सूची नहीं बनाई जा सकती। इसलिए संविधान संशोधन की अन्तिमता पर प्रश्नचिह्न लगा रहेगा। ऐसा संभव है कि कोई संशोधन दस साल तक माना जाता रहे और बाद में वह पांच न्यायाधीशों की पीठ के सामाजिक दर्शन के विपरीत हो और उसे निरस्त कर दिया जाए। फिर दस वर्ष के बाद सात न्यायाधीशों की पीठ उसे सही करार दे। यदि मूल ढांचे के अन्तर्विरोधों को अपने स्वाभाविक मुकाम तक पहुंचने दिया जाए, तो भविष्य में संविधान के किसी अनुच्छेद में संशोधन नहीं किया जा सकता, जबकि संविधान तो जीवंत समाज को शासित करने वाले सूत्र वाक्यों का संहिताकरण मात्र है। चूंकि प्रगतिशील समाज की जरूरतें हर समय बदलती रहती हैं तथा उसकी आकांक्षाओं में सतत परिवर्तन होता रहता है। अत: संविधान में उसके मुताबिक संशोधन की भी आवश्यकता पड़ती है। यदि उसमें संशोधन की संभावना को समाप्त कर दिया जाएगा, तो उसमें जड़ता आ जाएगी। वह समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप अपने आपको ढालने में असमर्थ रहेगा। जब संविधान में संशोधन के विधि सम्मत रास्ते बंद कर दिए जाएंगे तो आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जनता दूसरे तरीकों का सहारा लेगी और विद्रोह जैसे विकल्पों को चुनने को बाध्य होगी।
अपनी सभी तथाकथित कमियों के बावजूद जन प्रतिनिधि ही जनता की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में यह जिम्मेदारी उसे ही दी गई है। इसीलिए अपनी जवाबदेही और वफादारी सिद्ध करने के लिए उसे हर पांच साल बाद जनता की अदालत में आना पड़ता है। अत: शासन की नीतियों को निर्धारित करने का स्वाभाविक अधिकार उसी का है। न्यायालय द्वारा सृजित मूल ढांचे जैसे अस्पष्ट और अन्र्तिंर्वंरोधों से ग्रस्त मोहक और लुभावने सिद्धांतों से इसमें बाधा नहीं पहुुंचाई जानी चाहिए। विद्वान न्यायाधीशगण संविधान के महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं, लेकिन हमें इस खुशफहमी में नहीं रहना चाहिए कि किसी देश की व्यवस्था को केवल न्यायाधीश ही बचा सकते हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति या स्वभाव
आजादी के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था एक 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' रही है। भारत के बड़े सार्वजनिक क्षेत्र 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' को सफल बनाने के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार रहे हैं । भारतीय अर्थव्यवस्था, मूल रूप से सेवा क्षेत्र (वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद का 60% हिस्सा प्रदान करता है) के योगदान और कृषि (जनसंख्या के लगभग 53% लोग) स्वाभाविक और समय मूल्य पर निर्भर है । ज्यों-ज्यों समय बीत रहा है वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी कम हो रही है तथा सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ रही है।
आजादी के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था एक 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' रही है। भारत के बड़े सार्वजनिक क्षेत्र 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' को सफल बनाने के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार रहे हैं । भारतीय अर्थव्यवस्था, मूल रूप से सेवा क्षेत्र (वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद का 60% हिस्सा प्रदान करता है) के योगदान और कृषि (जनसंख्या के लगभग 53% लोग) पर निर्भर है । ज्यों-ज्यों समय बीत रहा है वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी कम हो रही है तथा सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ रही है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की एक विकासशील अर्थव्यवस्था कहा जाता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं
1. स्वतंत्रता के बाद से ही भारत की अर्थव्यवस्था एक 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' रही है। भारत के बड़े सार्वजनिक क्षेत्र अर्थव्यवस्था के लिए रोजगार और राजस्व प्रदान करने के प्रमुख कारक रहे हैं ।
2. विश्व व्यापार संगठन के अनुमानों के अनुसार वैश्विक निर्यात और आयात में भारत की हिस्सेदारी में क्रमश: 0.7% और 0.8% की वृद्धि हुई है जो 2000 में 1.7% थी और 2012 में 2.5% हो गई थी।
3. आजादी के बाद से ही भारतीय अर्थव्यवस्था का परिदृश्य सोवियत संघ की कार्यप्रणाली से प्रेरित रहा था। 1980 के दशक तक विकास दर 5 से अधिक नहीं थी। कई अर्थशास्त्रिययों द्वारा इस स्थिर विकास को 'हिंदू विकास दर' कहा गया था।
4. 1992 के दौरान देश में उदारीकरण के दौर की शुरुआत हुई। इसके बाद, अर्थव्यवस्था में सुधार होना शुरू हो गया था। विकास दर के इस नए चलन को 'नई हिंदू विकास दर' कहा जाता था।
5. भारत की अर्थव्यवस्था में पारंपरिक ग्रामीण खेती, आधुनिक कृषि, हस्तशिल्प, आधुनिक उद्योगों की एक विस्तृत श्रृंखला और कई सेवाओं के विभिन्न स्वाभाविक और समय मूल्य क्षेत्र शामिल हैं।
6. सेवा क्षेत्र आर्थिक विकास का प्रमुख स्रोत हैं। इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था के आधे से ज्यादा उत्पादन के साथ श्रम शक्ति का एक तिहाई भाग शामिल है।
वर्तमान विश्लेषण
1. वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद की कारक लागत (फैक्टर कॉस्ट), (2004-05के मूल्यानुसार) 5748564 करोड़ रुपए है (आंकड़ा 2013-14)
2. प्रति व्यक्ति आय (वर्तमान मूल्यानुसार) 74,920 रुपये है। (2013-14)
3. 2011-12 की सकल घरेलू बचत दर 30.8% है। (प्रतिशत के रूप में सकल घरेलू उत्पाद का़ वर्तमान बाजार मूल्य)
4. तृतीयक क्षेत्र सकल घरेलू उत्पादन में लगभग 60% का योगदान देता है। (2012-13)
5. कुल खाद्यान्न उत्पादन 265 मिलियन टन (2013-14) है।
6. कुल वैश्विक निर्यात में भारतीय व्यापार का हिस्सा 1.8% है।
7. विश्व के कुल आयात में भारत की हिस्सेदारी 2.5% है।
8. भारत की आबादी का कुल आकार 1.26 बिलियन (2014) है।
9. वर्ष 2015 की पहली छमाही के दौरान नई परियोजनाओं में अमेरिका और चीन को पछाड़ते हुए भारत में सभी देशों के बीच सर्वाधिक एफडीआई प्रवाह देखा गया। पिछले वर्ष की छमाही के 12 बिलियन डॉलर के मुकाबले 2015 में 31 बिलियन डॉलर का व्यय विदेशी कंपनियों द्वारा किया गया। जबकि इसी अवधि के दौरान चीन और अमेरिका में क्रमश: 28 और 27 बिलियन डॉलर का विदेशी निवेश हुआ।
10. 2015 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 330 बिलियन डॉलर का रहा जो कि इस समय (अप्रैल 2016) में अब तक के सर्वोच्च स्तर 355 बिलियन डॉलर पर खड़ा है।
11. इंजीनियरिंग, पेट्रोलियम, रत्न एवं आभूषण, कपड़ा और औषधि शीर्ष पांच क्षेत्रों में वैश्विक मांग में कमी के कारण अगस्त 2015 में लगभग 25 फीसदी की गिरावट आई जो घटकर 13.33 बिलियन डॉलर हो गई। 2014-15 के दौरान इन पांच कारकों का कुल निर्यात में लगभग 66 फीसदी का योगदान था। पिछले वर्ष अगस्त में इन क्षेत्रों से कुल निर्यात 17.79 बिलियन डॉलर का रहा था।
12. गरीबी आकलन:
I- रंगराजन समिति की सिफारिशों (ग्रामीण क्षेत्रों में एक दिन में 32 रुपये/दिन खर्च करने वाले और कस्बों तथा शहरों में 47 रुपये/दिन खर्च करने वाले लोगों को गरीब नहीं माना जाना चाहिए) के परिणामस्वरूप गरीबी रेखा से नीचे की आबादी में वृद्धि हुई है। इसमें तेंदुलकर समीति के 270 मिलियन आबादी के मुकाबले यह 2011-12 में 35 फीसदी की वृद्धि के साथ यह बढकर 363 बिलियन हो गई।
II- रंगराजन समिति द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार भारत की 29.5 फीसदी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है जबकि 2009-10 में तेंदुलकर समीति के अनुसार यह 21.9 फीसदी थी। रंगराजन के अनुसार कुल आबादी में बीपीएल समूह की हिस्सेदारी 38.2 फीसदी की थी जिसमें दो साल की अवधि के दौरान गरीबी में 8.7 प्रतिशत अंकों की गिरावट दर्ज की गई।
भारतीय अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था (सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का संयोजन) है। अपनी प्रकृति के कारण वर्तमान में भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे विकसित अर्थव्यवस्था के रूप में जाना जाता है। कुल सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का हिस्सा घटता जा रहा है जबकि सेवा क्षेत्र का हिस्सा बढ़ता जा रहा है या सकल घरेलू उत्पाद में तृतीयक क्षेत्र के योगदान में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है (इसे भारत के विकसित होने के संकेत के रूप में देखा जाता है)।
दो बैलों की कथा
छोटी बच्ची का बैलों के प्रति प्रेम उमड़ने के निम्नलिखित कारण हैं -
1. छोटी बच्ची की माँ मर चुकी थी। वह माँ के बिछुड़ने का दर्द जानती थी। उसे लगा कि वे भी उसी की तरह अभागे हैं और अपने मालिक से दूर हैं।
2. छोटी बच्ची को उसकी सौतेली माँ सताती थी, यहाँ हीरा-मोती पर अत्याचार कर रहा था ।
कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभरकर आए हैं?
इस कहानी के माध्यम से निम्नलिखित नीति विषयक मूल्य उभरकर सामने आए हैं :
1 विपत्ति के समय हमेशा मित्र की सहायता करनी चाहिए।
2. सच्चे मित्र मुसीबत के समय एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ता है ।
3. आजादी के लिए हमेशा सजग एवं संघर्षशील रहना चाहिए।
4. समाज के सुखी-संपन्न लोगों को भी आज़ादी की लड़ाई में योगदान देना चाहिए।
5. अपने समुदाय के लिए अपने हितो का त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
6. आज़ादी बहुत बड़ा मूल्य है। इसे पाने के लिए मनुष्य को बड़े-से-बड़ा कष्ट उठाने को तैयार रहना चाहिए।
रचना के आधार पर वाक्य के भेद बताइए तथा उपवाक्य छाँटकर उसके भी भेद लिखिए -
दीवार का गिरना था कि अधमरे-से-पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।
यहाँ संयुक्त वाक्य है तथा संज्ञा उपवाक्य है।
प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद ने गधे की किन स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूढ़ अर्थ 'मूर्ख' का प्रयोग न कर किसी नए अर्थ की ओर संकेत किया है?
इस कहानी में लेखक ने गधे की सरलता और सहनशीलता की ओर हमारा ध्यान खींचा है। गधे को स्वभाव के कारण मूर्खता का पर्याय समझा जाता है। आमतौर पर हम गधे के लिए मूर्ख शब्द का प्रयोग करते हैं परन्तु उसके स्वभाव में सरलता और सहनशीलता भी देखने को मिलती है। गधा ही एक एक मात्र ऐसा प्राणी है जो सब अत्याचार चुपचाप सेहन कर लेता है। फिर भी कभी उसके चेहरे पर अन्याय के प्रति असंतोष नज़र नही आता। प्रेमचंद ने स्वयं कहा है - सदगुणों का इतना अनादर कहीं नहीं देखा। कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। कहानी में भी उन्हों ने सीधेपन की दुर्दशा दिखलाई है, मूर्खता की नहीं।
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